।।श्रीहरिः।। “वचनामृत” श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज * साधक अगर जगत्-को जगत्-रूपसे देखे तो उसकी ‘सेवा’ करे और भगवद्रूपसे देखे तो उसका ‘पूजन’ करे | अपने लिये कुछ न करे | मात्र कर्म अपने लिये करना बन्धन है, संसार के लिये करना सेवा है और भगवान्-के लिये करना पूजन है| हरिःशरणम् ! हरिःशरणम् !! हरिःशरणम् !!! {‘श्रीकृष्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘अनुभव-वाणी’से} Get link Facebook X Pinterest Email Other Apps May 03, 2021 Read more